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. 5 फरवरी भीष्म अष्टमी - निर्वाण दिवस /भीष्म पितामह की जीवन गाथा

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 भीष्म पितामह की जीवन गाथा भीष्म पितामह का जन्म का नाम देवव्रत था. इनके जन्म कथा अनुसार इनके पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे. एक बार राजा शांतनु, गंगा के तट पर जा पहुंचते हैं, जहां उनकी भेंट एक अत्यंत सुन्दर स्त्री से होती है. उस रुपवती स्त्री के प्रति मोह एवं प्रेम से आकर्षित होकर वे उनसे उसका परिचय पूछते हैं और अपनी पत्नी बनने का प्रस्ताव रखते हैं. वह स्त्री उन्हें अपना नाम गंगा बताती है और उनके विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त भी रखती है, की राजा आजीवन उसे किसी कार्य को करने से रोकेंगे नहीं और कोई प्रश्न भी नहीं पूछेंगे. राजा शांतनु गंगा की यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं और इस प्रकार दोनो विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. गंगा से राजा शान्तनु को पुत्र प्राप्त होता है, लेकिन गंगा पुत्र को जन्म के पश्चात नदी में ले जाकर प्रवाहित कर देती है. अपने दिए हुए वचन से विवश होने के कारण शांतनु, गंगा से कोई प्रश्न नहीं करते हैं . इसी प्रकार एक-एक करके जब सात पुत्रों का वियोग झेलने के बाद, गंगा राजा शांतनु की आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए जाने लगती है तो अपने वचन को तोड़ते हु...

राव सूरजमल हाड़ा के पिता राव नारायण दास ओर उनका परिचय / बुंदी नरेश,

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राव नारायण दास :1503-1527  बूंदी नरेश राव नारायण दास को अन्य किस नाम से जाना जाता है - बुंदी नरेश राव नारायण दास को नर केशरी उपनाम से जाना जाता है  छायाचित्र - राव नारायण दास बूंदी  बूंदी नरेश राव नारायण दास का शासनकाल 1503ई -1527ई तक राव नारायण दास का शासनकाल 1503-1527 के मध्य रहा था ,यह बूंदी के सातवें शासक थे,बूंदी नरेश बन्दो/सुबंनधू  का निधन होने के पश्चात उनके पुत्र नारायण दास को बूंदी की बागडोर सोपी गई। नारायण दास एक विर योद्धा के साथ ही कार्यकुशल शासक साबित हुए। राव नारायण दास परिचय   15वीं सदी के उत्तरार्द्ध में राव बान्दोजी (बन्दो/सुबन्धु) बूँदी के शासक बने। उनके साथ उन्हीं के परिवारजनों ने धोखा किया। मजबूर होकर उसे राज्य छोड़कर मतुण्डा के पहाड़ी जंगलों में जाना पड़ा, जहाँ 1503 ई. के लगभग उसकी मृत्यु हो गई। 16वीं सदी में 1503 ई. के आसपास (वि.सं. 1560 के लगभग) बूँदी के शासक बन्दो का पुत्र नारायण दास गद्दी पर बैठा। उसने मेवाड़ महाराणा सांगा  अच्छे संबंध स्थापित किये तथा अपने राज्य के खोये हुए प्रदेशों को वापस प्राप्त किया। उसने मेवाड़ पर मालवा ...

बूंदी नरेश राव सूरजमल हाड़ा/ बूंदी प्रकरण/छतरी वहीं बनायेंगे

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राव सूरजमल हाड़ा/छतरी प्रकरण छतरी प्रकरण आगे की रणनीति    राजनीतिक दलों की चिंता में डूबे हुए समाज को ,अपने पूर्वजों के सम्मान के लिए भी कुछ चिंतन करना चाहिए।     जब इतिहास और पूर्वजों का सम्मान ही नष्ट हो जाएगा। तो देर सवेर ,एक ना एक दिन समाज का भी पतन हो जाएगा।    बिहार में नक्सलियों ने क्षत्रिय समाज को टारगेट किया। तो क्षत्रियों ने भी नक्सलियों का उनकी ही भाषा में प्रतिकार किया और अपने वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित किया।      यदि समाज को अपने अस्तित्व ,इतिहास और पूर्वजों के सम्मान की रक्षा करनी है ।तो हर तरह के संघर्ष का रास्ता अपनाना होगा।     यदि अफगानिस्तान में यह घटना होती। तो समझ में आता कि विधर्मियों ने यह कार्य किया।    लेकिन यह बहुत ही शर्म का विषय है कि राजस्थान में सरकारी एजेंसियों के द्वारा ही यह घटना घटित हुई।     राजस्थान में तो तालिबान का शासन नहीं है ।फिर यह घटना कैसे घटित हुई ?   आखिर प्रशासन में ऐसे कौन से लोग हैं । जो तालिबानी मानसिकता के हैं ।उनकी पहचान कर उन्हें दंडित करना चाहि...

बूँदी छतरी प्रकरण/आगे की रणनीति, राव सूरजमल हाड़ा

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 " बूँदी छतरी प्रकरण - आगे की रणनीति" राव सूरजमल हाड़ा बूंदी का परिचय   👉 1) छतरी किसी भी परिस्थिति मे सरकार के सहायता द्वारा नही बल्कि समाज के सहयोग से खुद ही बनानी है, यह कार्य 8 अक्टूबर को ही शुभारंभ होना चाहिए।। 👉2) छतरी के पास तोडी हुयी छतरी का अवशेष का मेमोरियल बनाया जाए :- इस मेमोरियल मे बडी पट्टीका लगाकर निम्नलिखित तथ्य लिखने है :-      क) यह राव सूरजमल जी की छतरी हिदुतव के भेष मे छिपी हुयी आरएएस भाजपा की सरकार द्वारा क्षत्रिय विद्वेष मे बामियान बुध्द की मूर्ति की तर्ज तालिबान की तर्ज पर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा तथा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला के इशारे पर तोडी गयी।।    ख) इस छतरी तोडने के समय नकारा तथा कायर राजपूत लिडरशिप जिसमे उपमुख्यमंत्री तथा कला संस्कृति दिया कुमारी, केंद्रीय मंत्री पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेन्द्र राठौड़, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह खींवसर तथा अन्य राजपूत लिडरशिप के रहते यह छतरी तोडी गयी।। ताकि इस नकारा राजपूत लिडरशिप का आने वाली पीढ़ियों को पता रहे।। 👉3) सिक्खों के आनंदपुर साहिब resol...

बूंदी नरेश राव सूरजमल हाड़ा/छतरी वहीं बनायेंगे/ छतरी प्रकरण

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एक आम सामाजिक व्यक्ति का दर्द  यह है हमारी जिन्दगी  जानिए कोन है सूरजमल हाड़ा यह है हमारी जिन्दगी की उजङी हुई कहानियाँ ।। राणा सांगा से वीर थे, कुम्भा का विजय स्तम्भ देख । टुटे हुए खण्डहरों में, सोती हुई कहानियाँ । यह है हमारी जिन्दगी की उजङी हुई कहानियाँ ।। मातृभूमि के हित के लिए, राणा के सारे कष्ट थे । अरावली से बह रही है, आँसू भरी कहानियाँ । यह है हमारी जिन्दगी की उजङी हुई कहानियाँ ।। जैता, कूंपा, झाला, दुर्गा या नेता क्या कहे । सेर सलूने के लिए, यह मिटने की है कहानियाँ । यह है हमारी जिन्दगी की उजङी हुई कहानियाँ ।। नकली किलों पर मर गये, छाती से दरवाजे तोड़ दिये । बलिहारी मस्त वीरता की, व उसकी उजङी कहानियाँ । यह है हमारी जिन्दगी की उजङी हुई कहानियाँ ।। छतरी प्रकरण - क्लिक करें       

मां करणी के चमत्कार

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मां करणी के चमत्कार   ऐसे तो मां करणी के अनेक को चमत्कार है लेकिन एक ऐसा ही चमत्कार उनके उनके बालपन में हुआ हुआ ऐसा कि उनके पिताजी को  ने डस लिया तब उन्होंने कैसे अपने पिताजी को जिवन दान दिया।  ओर जानने के लिए क्लिक करें - करणी माता दशनोक पिता को जीवनदान देना:- वि.सं. 1450 (1393 ई.)  एक दिन वर्षा ऋतु में मेहाजी अपने खेत से घर आ रहे थे। अधेरा हो जाने के कारण उनका पैर काले साँप के फन पर गिर गया। साँप ने मेहाजी को तत्काल डस लिया। अत्यधिक विषैले साँप के काटने के कारण थोडी दूर चलने के बाद वहीं गिर पड़े। अधिक रात होने पर भी मेहाजी के घर नहीं लौटने पर उनके परिवार के सदस्यों तथा नौकरों ने उनकी खोज- बीन करनी शुरु की तो मेहाजी उनको खेत के रास्ते में मृत पड़े मिले। उनको उठाकर घर लाया गया। रोशनी में देखने पर ज्ञात हुआ कि उनकी मृत्यु साँप के काटने से हुई है। साँप के काटने से मरे हुए व्यक्ति को तत्काल नहीं जलाते है। परिवार के सदस्यों का शोरगुल देखकर छः वर्षीय बालिका श्रीकरणीजी की नींद खुल गई। श्रीकरणीजी ने अपने पिता के समक्ष बैठकर साँप के दंश की जगह हाथ रख के कहा...

आइये जानते हैं मां करणी के पहले चमत्कार के बारे में

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मां करणी का प्रथम चमत्कार  प्रसूति गृह से जब शिशु के रोने की आवाज मेहाजी के कानों में पडती है तब उन्होंने अपनी बहिन को उत्सुकतावश पूछा कि क्या हुआ लडका या लडकी? तो उसकी बहिन, जो उन दिनों पीहर आई हुई थी, ने हाथ का डूचका देते हुए कहा कि फिर पत्थर आ गया अर्थात् लडकी हुई है।  इतना कहना हुआ कि उनकी पाँचों अंगुलियाँ ज्यों की त्यों जुडी हुई रह गयी और वापस नहीं खुल सकी। उस युग में लडकी के जन्म को अशुभ समझा जाता था। पुत्री जन्म को अभिशाप मानने वालों के लिए रिधू बाईसा (श्रीकरणीजी) की यह प्रथम दण्डात्मक सीख थी, जो आज के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक है। मेहाजी की बहिन द्वारा जो देवी श्रीकरणीजी का उपहास किया गया उसका प्रतिफल उसे तुरन्त ही मिल गया। लेकिन उनकी भँआ देवी श्रीकरणीजी का चमत्कार नहीं समझ सकी और अंगुलियों के जुड़ने का कारण बादी आना समझ लिया। करणी माता का नामकरण   जन्म के तीसरे दिन नामकरण संस्कार हुआ और कन्या का नाम रिधूबाई रखा गया। नाम के अनुरुप ही मेहाजी के घर में रिद्धी- सिद्धी बढने लगी। रिधू बाई के जन्म से पूर्व पिता मेहाजी की साम्पत्तिक दशा साधारण थी। परन्तु उनके जन्...

करणी माता/ दशनोक/ डाडी वाली डोकरी,बिकानेर राठौड़ो की इष्ट-देवी /राठौड़/करणी कृपा

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  करणी माता देशनोक (बीकानेर) करणी माता परिचय  • बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुल देवी नागणेच्या माता वह इनकी इष्ट देवी करणी माता है 'चूहों वाली देवी' के नाम से भी विख्यात है। इनका जन्म सुआप गाँव में चारण जाति के श्री मेहा जी के घर हुआ था। देशनोक स्थित इनके मंदिर में बड़ी संख्या में चूहे हैं जो 'करणी जी के काबे' कहलाते हैं। चारण लोग इन चूहों को अपना पूर्वज मानते हैं। यहाँ के सफेद चूहे के दर्शन करणी जी के दर्शन माने जाते हैं। करणी जी का मंदिर मंढ कहलाता है। ऐसी मान्यता है कि करणी जी ने देशनोक कस्बा बसाया था  करणी माता किसकी पूजा करते थे  • करणीजी की इष्ट देवी 'तेमड़ा जी' थी। करणी जी के मंदिर के पास तेमड़ा राव देवी का भी दिए है। जाता है कि करणी देवी का एक रूप 'सफेद चील' भी है। करणी माता द्वारा अपने पिताजी को जिवन दान  नेहडी जी कहां है  • करणी माता के मंदिर से कुछ दूर 'नेहड़ी' नामक दर्शनीय स्थल है, जहाँ करणी देवी सर्वप्रथम रहे थे। यहाँ स्थित शमी (खेजड़ी) के एक वृक्ष पर माता डोरी बाँधकर दही बिलोया करती थी। इसकी छाल नाखून से उतारकर भक्त गण अपने साथ ले जा...

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नागणेच्या माता का चमत्कारिक मंदिर जिसको कहा जाता है मिनी नागाणा

छतरी प्रकरण मामले में बनी सहमति

राव सूरजमल हाड़ा/बूंदी नरेश राव सूरजमल हाडा (1527-1531)