. 5 फरवरी भीष्म अष्टमी - निर्वाण दिवस /भीष्म पितामह की जीवन गाथा

जन्म के तीसरे दिन नामकरण संस्कार हुआ और कन्या का नाम रिधूबाई रखा गया। नाम के अनुरुप ही मेहाजी के घर में रिद्धी- सिद्धी बढने लगी। रिधू बाई के जन्म से पूर्व पिता मेहाजी की साम्पत्तिक दशा साधारण थी। परन्तु उनके जन्म के साथ-साथ दिन प्रतिदिन पिता की समृद्धि बढने लगी।
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भुँआ की अंगुलियों को ठीक करना:- वि.सं. 1449-50 (1392-93 ई.) की बात है उन दिनों श्रीकरणीजी की भुआ पीहर आयी हुई थी। भुँआजी अन्य छः बहिनों की अपेक्षा रिधू बाई को बहुत प्यार करती थी। एक दिन वे रिधू बाई को स्नान करा रही थी। एक हाथ से भुँआ उनको ठीक से नहीं स्नान करा पा रही थी, तब रिधू बाई ने पूछा कि आप दोनों हाथों से क्यों नहीं स्नान करा रही है? तब भँआ ने उनके जन्म के समय की सारी घटना सुनाई। फिर श्रीकरणीजी ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि आपका हाथ तो बिलकुल ठीक है, क्यों बहाना बनाती हो? यह कहना हुआ कि भँआ का हाथ बिकुल भला-चंगा हो गया। उनके हाथ की अंगुलियाँ फिर से पूर्ववत् हो गयी। भँआ का हाथ ठीक होंने से उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई। भुँआ ने अपने भाई व भाभी को इस चमत्कार की बात बताई।
इस घटना के बाद भुँआ ने कहा कि इस कन्या को साधारण न समझे, यह संसार मे अपनी कुछ करनी दिखलायेगी। तब भुँआ ने कन्या के जन्म के नाम रिधूबाई को बदलकर करणी नाम रख दिया। इस दिन के बाद से रिधूबाई श्रीकरणीजी के नाम से विश्व विख्यात हुई। अनेकों ग्रंथों में श्रीकरणीजी का नाम करणी पडने के पीछे भूआ का हाथ टूटा करना बतलाया गया है, जबकि सही बात यह है कि पाँच वर्ष की अवस्था में रिधूबाई (श्रीकरणीजी) ने भँआ का टूटा हाथ ठीक किया तब उन्होंने रिधू बाई का नाम बदलकर करणी रखा और आगे रिधूबाई इसी नाम से विश्व में विख्यात हुई।
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