भीष्म पितामह की जीवन गाथा भीष्म पितामह का जन्म का नाम देवव्रत था. इनके जन्म कथा अनुसार इनके पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे. एक बार राजा शांतनु, गंगा के तट पर जा पहुंचते हैं, जहां उनकी भेंट एक अत्यंत सुन्दर स्त्री से होती है. उस रुपवती स्त्री के प्रति मोह एवं प्रेम से आकर्षित होकर वे उनसे उसका परिचय पूछते हैं और अपनी पत्नी बनने का प्रस्ताव रखते हैं. वह स्त्री उन्हें अपना नाम गंगा बताती है और उनके विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त भी रखती है, की राजा आजीवन उसे किसी कार्य को करने से रोकेंगे नहीं और कोई प्रश्न भी नहीं पूछेंगे. राजा शांतनु गंगा की यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं और इस प्रकार दोनो विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. गंगा से राजा शान्तनु को पुत्र प्राप्त होता है, लेकिन गंगा पुत्र को जन्म के पश्चात नदी में ले जाकर प्रवाहित कर देती है. अपने दिए हुए वचन से विवश होने के कारण शांतनु, गंगा से कोई प्रश्न नहीं करते हैं . इसी प्रकार एक-एक करके जब सात पुत्रों का वियोग झेलने के बाद, गंगा राजा शांतनु की आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए जाने लगती है तो अपने वचन को तोड़ते हु...
खानवा युद्ध में नारायणदास की मृत्यु हो गई इसके पश्चात शासक 'राव सूरजमल बुंदी का शासक १५२७ मे बना इस समय बूंदी मेवाड़ रियासत के अधीन थी और राव सूरजमल के समय मेवाड़ शासक राणा रतन सिंह (द्वितीय)1528-1531 थे महाराणा मेवाड़ ओर राव के बिच विभिन्न बातों के लिए अनबन रहती थी, रणथंभौर दुर्ग के मामले पर राव सूरजमल से अत्यधिक नाराज थे। अतः वह सूरजमल को येन-केन प्रकेण मारना चाहते थे।
मेवाड़ महाराणा ओर बूंदी नरेश विवाद का मुख्य कारण - महाराणा सांगा ने अपनी रानी कर्णावती को रणथंभौर की जागीर दी थी ,रतन सिंह शासक बनने के पश्चात रणथंभौर को अपने अधिकार क्षेत्र मे लेना चाहता था, लेकिन रानी कर्णावती ने रणथंभौर वह अपने दोनों पुत्रों का संरक्षक अपने भाई राव सूरजमल हाड़ा को नियुक्त कर दिया
युद्ध - एक दिन मेवाड़ महाराणा शिकार खेलने के बहाने बूँदी राज्य के पास गोकण तीर्थवाले गाँव(तुलसी) में गये तथा वहां सूरजमल की उपस्थिति अनिवार्य थी इसलिए सूरजमल को वहाँ शिकार खेलने हेतु बुलाया। शिकार खेलने के दौरान राणा रतनसिंह ने राव सूरजमल हाड़ा पर तलवार से प्रहार किया बून्दी नरेश मूर्छित हो गिर पड़े,तभी रतन सिंह उनके समक्ष आकर कहने लगे कि क्या यही है बून्दी का शेर कुछ क्षणों में सूरजमल जी की मूर्छा टूटी व घायल राव सूरजमल ने रतन सिंह पर शीघ्र ही कटार से प्रहार कर रतन सिंह का वध कर दिया तथा उनके साथी सेनिको को मारकर कर स्वयं भी वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार दोनों मारे गये। इसके बाद सूरजमल का पुत्र राव सुरताण सिंह बूँदी के सिंहासन पर बैठा। इसके समय मालवा के सुल्तान ने बूँदी पर आक्रमण किया तो यह वहाँ से भागकर रायमल खींची की शरण में चला गया। इसके पीछे से की सहायता से बूँदी के सरदारों ने इसके पुत्र सुरजन सिंह को गद्दी पर बैठा दिया।
राव सुरजमल के माता की प्रतिक्रिया _कहते हैं कि जब सूरजमल जी जीवित थे और उनके मरने की खबर बून्दी महल में पहुची तो उनकी माँ ने पूछा उसका हत्यारा जीवीत है या मारा गया। हत्यारे को अपने पुत्र द्वारा ही मारने कि खबर पर स्नेहस्वरूप दुग्धधारा निकल आई जिसको बूंदी के किले की दीवार पर फेका तो दीवार में दरार आ गयी थी।वह शिला आज भी महलो में स्थित है।
सन्दर्भ- वंश भास्कर
राव सूरजमल हाड़ा की छतरी
राव सूरजमल हाड़ा की छतरी तुलसी गाँव मे स्थित है जिसके नाम 14 बिस्वा परिसर व 13 बीघा जमीन बल्लोप में दर्ज है। जमीन पर वर्षों से लोगों का कब्जा है।राव सूरजमल पर एपिक नामक टीवी चैनल पर "रक्त" नामक सीरियल प्रकाशित हो चुका है।
#राव_सूरजमल_हाड़ा
#छतरी
सारांश
यह कथा राजस्थान के गौरवमय इतिहास ओर वीरता की अव्दितीय मिशाल है। राणा ओर राव के बीच का संघर्ष न केवल व्यक्तिगत प्रतिशोध ओर शोर्य का प्रतीक है। बल्कि उस समय के राजपूत शासकों के अदम्य साहस सम्मान ओर प्रतिष्ठा को भी दर्शाता है
इस तरह की कहानियाँ राजस्थान की संस्कृति और इतिहास को अद्वितीय बनाती हैं, और वे आने वाली पीढ़ियों को शौर्य और सम्मान का संदेश देती हैं।
जहाँ एक ओर अन्य राजपरिवारों के सदस्य, पूर्वजों के स्मारक व छतरियों के समय समय पर दर्शन व देख-रेख करते हैं।
Samrat Yashodharman Malava Janam Diwas - Shasan (CE 515 - CE 545) यशोधर्मन कलचुरी राजपूत राजा थे । 1) = 490 ईस्वी में उजबेकिस्तन से लेकर रावलपिंडी पर जांजुवा राजपूत वंश का शासन था । 2) = गजनी, कंधार से लेकर बाहलपुर और जैसलमेर तक भट्टी राजपूत वंश का शासन था । 3) = कश्मीर, पंजाब और हिमाचल से लेकर उत्तराखंड तक पर कटोच राजपूत राजपूत वंश का शासन था । 4) = नेपाल पर लिछवि राजपूत वंश का शासन था । 5) = गुजरात पर गोहिला (गुहिल) राजपूतों का राज था 7) = मालवा (South MP) और Northern महाराष्ट्र पर कलचुरी राजपूतों का राज था जिसे ओलेखरा Kingdom जो की हैहेय वंशी (कलचुरी राजपूत) का शासन था । [ यशोधर्मन कलचुरी राजपूत थे मालवा थे ना की ब्राह्मण या जाट, संदर्भ: द साल्ट रेंज एंड पोटोहर पठार लेखक सलमान रुश्दी] | [ मिहिरकुल के पिता नें यशोधरमन कलचुरी को राजपूत्रा बोला था Reference: (Epigraphia Indica Volume 1]| जब भारत में गुप्त साम्राज्य था उसी समय मध्य एशिया के एक बर्बर कबीले ने भारत पर आक्रमण किया जिन्हें हूण कहते थे, लेकिन स्कन्दगुप्त ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया जिसके कारण वे ईरान की तरफ चल...
करमसोत राठौड़ो का इतिहास भाग 2 पिछले लेख में हमने जाना कि किस प्रकार राव जोधा द्वारा अपने पुत्र को खिंवसर जागीरदार नियुक्त किया गया ओर ठाकुर करमसी जोधावत ने किस प्रकार युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए करमसी जोधावत करमसोत राठौड़ो का इतिहास भाग 1 - पढ़ने के लिए क्लिक करें करमसी जोधावत का परिचय ठाकुर करमसी जोधावत के पांच पुत्र हुए जिनको इनके द्वारा अलग अलग ठिकानों का प्रबंध दिया, करमसी जोधावत के अधिकार क्षेत्र मे इस समय खिंवसर, आसोप, ओर नाड़सर थे करमसोतो का पाटवी घराना खिंवसर है करमसी जोधावत के पश्चात उनके पुत्र राठोड़ पचांयण जी करमसोत को खिंवसर का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। पचायण जी करमसोत करमसी जोधावत के पश्चात उनके सुयोग्य पुत्र कुंअर पचांयण जी करमसोत को खिंवसर ठिकाने का पाटवी बनाया गया। पंचायण जी करमसोत एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता और बलिदान से इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उन्होंने शेरशाह सूरी के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया और अपनी वीरता के कारण शेरशाह की सेना को रोक...
करमसोत राठौड़ो का इतिहास करमसोत राठौड करमसी जोधावत ओर अधिक जानने के लिए देखें राठौड़ राजवंश की कुलदेवी नागणेच्या माता /नागाणा राय/ नागाणा/नागाणाधाम राठौर राजवंश की उप शाखा करमसोत कर्मसोत राठोड़ो का आदि पुरुष राव जोधा के पुत्र कु. करमसी थे , राव जोधाजी की दूसरी राणी भटियाणी पूरां के गर्भ से पैदा हुए थे। पूरा भाटी बैरसल चाचावत की पुत्री थी। इसके छः पुत्र हुए (१) करमसी (२) रायपाल (३) बणवीर (४) जसवन्त (५) कूपा (६) चान्दराव। राव जोधा द्वारा नागौर विजय वह अपने पुत्र को खिंवसर की जागीर प्रदान करना राव जोधा के कुल 21 पुत्र थे , करमसी राव जोधा के सबसे सुयोग्य पुत्रों में से थे, करमसी एक कुशल योद्धा के साथ साथ एक आज्ञाकारी पुत्र भी थे इस समय राव जोधा के राज्य का विस्तार नाड़सर तक था, नागौर में इस समय फेतहपुर के फेतह का कायमखानी का अधिकार था करमसी किसी भी तरह से नागौर को जोधपुर में मिलाना चाहते थे, इसलिए वह अपने दो ओर भाईयों के साथ नागौर के फेतह खान के पास चले गए फेतह खा ने करमसी को खिवसर वह रायपाल को ...
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