. 5 फरवरी भीष्म अष्टमी - निर्वाण दिवस /भीष्म पितामह की जीवन गाथा

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 भीष्म पितामह की जीवन गाथा भीष्म पितामह का जन्म का नाम देवव्रत था. इनके जन्म कथा अनुसार इनके पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे. एक बार राजा शांतनु, गंगा के तट पर जा पहुंचते हैं, जहां उनकी भेंट एक अत्यंत सुन्दर स्त्री से होती है. उस रुपवती स्त्री के प्रति मोह एवं प्रेम से आकर्षित होकर वे उनसे उसका परिचय पूछते हैं और अपनी पत्नी बनने का प्रस्ताव रखते हैं. वह स्त्री उन्हें अपना नाम गंगा बताती है और उनके विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त भी रखती है, की राजा आजीवन उसे किसी कार्य को करने से रोकेंगे नहीं और कोई प्रश्न भी नहीं पूछेंगे. राजा शांतनु गंगा की यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं और इस प्रकार दोनो विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. गंगा से राजा शान्तनु को पुत्र प्राप्त होता है, लेकिन गंगा पुत्र को जन्म के पश्चात नदी में ले जाकर प्रवाहित कर देती है. अपने दिए हुए वचन से विवश होने के कारण शांतनु, गंगा से कोई प्रश्न नहीं करते हैं . इसी प्रकार एक-एक करके जब सात पुत्रों का वियोग झेलने के बाद, गंगा राजा शांतनु की आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए जाने लगती है तो अपने वचन को तोड़ते हु...

मां करणी के चमत्कार


मां करणी के चमत्कार  

ऐसे तो मां करणी के अनेक को चमत्कार है लेकिन एक ऐसा ही चमत्कार उनके उनके बालपन में हुआ हुआ ऐसा कि उनके पिताजी को  ने डस लिया तब उन्होंने कैसे अपने पिताजी को जिवन दान दिया।



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पिता को जीवनदान देना:- वि.सं. 1450 (1393 ई.) 

एक दिन वर्षा ऋतु में मेहाजी अपने खेत से घर आ रहे थे। अधेरा हो जाने के कारण उनका पैर काले साँप के फन पर गिर गया। साँप ने मेहाजी को तत्काल डस लिया। अत्यधिक विषैले साँप के काटने के कारण थोडी दूर चलने के बाद वहीं गिर पड़े। अधिक रात होने पर भी मेहाजी के घर नहीं लौटने पर उनके परिवार के सदस्यों तथा नौकरों ने उनकी खोज- बीन करनी शुरु की तो मेहाजी उनको खेत के रास्ते में मृत पड़े मिले। उनको उठाकर घर लाया गया। रोशनी में देखने पर ज्ञात हुआ कि उनकी मृत्यु साँप के काटने से हुई है। साँप के काटने से मरे हुए व्यक्ति को तत्काल नहीं जलाते है। परिवार के सदस्यों का शोरगुल देखकर छः वर्षीय बालिका श्रीकरणीजी की नींद खुल गई। श्रीकरणीजी ने अपने पिता के समक्ष बैठकर साँप के दंश की जगह हाथ रख के कहा कि 'उठिये पिताजी और अपने काम में लगिये'। इधर श्रीकरणीजी के हाथ का स्पर्श करना हुआ और मेहाजी के शरीर का विष पल भर में उतर गया, और वे तत्काल उठ खडे हुए। इस चमत्कार के साथ सर्व साधारण में यह चर्चा फैल गयी कि श्रीकरणीजी साक्षात् महाशक्ति जगदम्बा का अवतार है।


     

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