भीष्म पितामह की जीवन गाथा भीष्म पितामह का जन्म का नाम देवव्रत था. इनके जन्म कथा अनुसार इनके पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे. एक बार राजा शांतनु, गंगा के तट पर जा पहुंचते हैं, जहां उनकी भेंट एक अत्यंत सुन्दर स्त्री से होती है. उस रुपवती स्त्री के प्रति मोह एवं प्रेम से आकर्षित होकर वे उनसे उसका परिचय पूछते हैं और अपनी पत्नी बनने का प्रस्ताव रखते हैं. वह स्त्री उन्हें अपना नाम गंगा बताती है और उनके विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त भी रखती है, की राजा आजीवन उसे किसी कार्य को करने से रोकेंगे नहीं और कोई प्रश्न भी नहीं पूछेंगे. राजा शांतनु गंगा की यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं और इस प्रकार दोनो विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. गंगा से राजा शान्तनु को पुत्र प्राप्त होता है, लेकिन गंगा पुत्र को जन्म के पश्चात नदी में ले जाकर प्रवाहित कर देती है. अपने दिए हुए वचन से विवश होने के कारण शांतनु, गंगा से कोई प्रश्न नहीं करते हैं . इसी प्रकार एक-एक करके जब सात पुत्रों का वियोग झेलने के बाद, गंगा राजा शांतनु की आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए जाने लगती है तो अपने वचन को तोड़ते हु...
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करमसोत राठौड़ो का इतिहास- karamsot rathore history part 2
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करमसोत राठौड़ो का इतिहास भाग 2
पिछले लेख में हमने जाना कि किस प्रकार राव जोधा द्वारा अपने पुत्र को खिंवसर जागीरदार नियुक्त किया गया ओर ठाकुर करमसी जोधावत ने किस प्रकार युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
ठाकुर करमसी जोधावत के पांच पुत्र हुए जिनको इनके द्वारा अलग अलग ठिकानों का प्रबंध दिया, करमसी जोधावत के अधिकार क्षेत्र मे इस समय खिंवसर, आसोप, ओर नाड़सर थे
करमसोतो का पाटवी घराना खिंवसर है करमसी जोधावत के पश्चात उनके पुत्र राठोड़ पचांयण जी करमसोत को खिंवसर का उत्तराधिकारी घोषित किया गया।
पचायण जी करमसोत
करमसी जोधावत के पश्चात उनके सुयोग्य पुत्र कुंअर पचांयण जी करमसोत को खिंवसर ठिकाने का पाटवी बनाया गया। पंचायण जी करमसोत एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता और बलिदान से इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उन्होंने शेरशाह सूरी के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया और अपनी वीरता के कारण शेरशाह की सेना को रोकने में सफल रहे। यह घटना मारवाड़ की रक्षा के लिए थी, और पंचायण जी ने अपने क्षेत्र और समाज की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया।
उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी साहस और धैर्य का परिचय दिया। उनके युद्ध कौशल और बलिदान ने न केवल उनके परिवार और राज्य का सम्मान बढ़ाया, बल्कि उन्हें एक प्रेरणादायक ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी बनाया।
पचांयण जी करमसोत
खिंवसर जागीरदार पचांयण जी करमसोत ओर गिरी सुमेल का युद्ध
पचांयण जी करमसोत जोधपुर नरेश राव मालदेव की चाकरी करते थे इसी समय 1544 ईस्वी में जोधपुर वह दिल्ली के मध्य गिरी सुमेल का युद्ध हुआ,राव मालदेव के युद्ध भूमि से पलायन वह अपने सैनानायको के प्रति अविश्वास की वजह से युद्ध का रूख ही बदल गया ।
गिरी सामेल के युद्ध में राठौड़ पंचायण करमसीहोत ने जैताजी, कूपाजी, खींवकरणजी, सोनगरा अखैराज जैसा भाटी नीबां के साथ वीरगति प्राप्त की थी। इन वीरों के बलिदान व रक्त रंजित संग्राम के कारण ही शेरशाह सूरी आगे नहीं बढ़ सका था। उसने वापिस मुड़कर मेड़ता के मार्ग से जोधपुर गमन किया था। जब उसे यह सूचना मिली कि मारवाड़ नरेश मालदेवजी जोधपुर से सिवाना की तरफ कूच कर गये हैं। इस लोकमहर्षक युद्ध के बारे में शेरशाह के मुख से सहसा निकल पडा था। "खुदा का शुक्र है कि किसी तरह फतह हासिल हो गई वरना मैंने एक मुट्ठी- बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत खोई थी।"
Samrat Yashodharman Malava Janam Diwas - Shasan (CE 515 - CE 545) यशोधर्मन कलचुरी राजपूत राजा थे । 1) = 490 ईस्वी में उजबेकिस्तन से लेकर रावलपिंडी पर जांजुवा राजपूत वंश का शासन था । 2) = गजनी, कंधार से लेकर बाहलपुर और जैसलमेर तक भट्टी राजपूत वंश का शासन था । 3) = कश्मीर, पंजाब और हिमाचल से लेकर उत्तराखंड तक पर कटोच राजपूत राजपूत वंश का शासन था । 4) = नेपाल पर लिछवि राजपूत वंश का शासन था । 5) = गुजरात पर गोहिला (गुहिल) राजपूतों का राज था 7) = मालवा (South MP) और Northern महाराष्ट्र पर कलचुरी राजपूतों का राज था जिसे ओलेखरा Kingdom जो की हैहेय वंशी (कलचुरी राजपूत) का शासन था । [ यशोधर्मन कलचुरी राजपूत थे मालवा थे ना की ब्राह्मण या जाट, संदर्भ: द साल्ट रेंज एंड पोटोहर पठार लेखक सलमान रुश्दी] | [ मिहिरकुल के पिता नें यशोधरमन कलचुरी को राजपूत्रा बोला था Reference: (Epigraphia Indica Volume 1]| जब भारत में गुप्त साम्राज्य था उसी समय मध्य एशिया के एक बर्बर कबीले ने भारत पर आक्रमण किया जिन्हें हूण कहते थे, लेकिन स्कन्दगुप्त ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया जिसके कारण वे ईरान की तरफ चल...
करमसोत राठौड़ो का इतिहास करमसोत राठौड करमसी जोधावत ओर अधिक जानने के लिए देखें राठौड़ राजवंश की कुलदेवी नागणेच्या माता /नागाणा राय/ नागाणा/नागाणाधाम राठौर राजवंश की उप शाखा करमसोत कर्मसोत राठोड़ो का आदि पुरुष राव जोधा के पुत्र कु. करमसी थे , राव जोधाजी की दूसरी राणी भटियाणी पूरां के गर्भ से पैदा हुए थे। पूरा भाटी बैरसल चाचावत की पुत्री थी। इसके छः पुत्र हुए (१) करमसी (२) रायपाल (३) बणवीर (४) जसवन्त (५) कूपा (६) चान्दराव। राव जोधा द्वारा नागौर विजय वह अपने पुत्र को खिंवसर की जागीर प्रदान करना राव जोधा के कुल 21 पुत्र थे , करमसी राव जोधा के सबसे सुयोग्य पुत्रों में से थे, करमसी एक कुशल योद्धा के साथ साथ एक आज्ञाकारी पुत्र भी थे इस समय राव जोधा के राज्य का विस्तार नाड़सर तक था, नागौर में इस समय फेतहपुर के फेतह का कायमखानी का अधिकार था करमसी किसी भी तरह से नागौर को जोधपुर में मिलाना चाहते थे, इसलिए वह अपने दो ओर भाईयों के साथ नागौर के फेतह खान के पास चले गए फेतह खा ने करमसी को खिवसर वह रायपाल को ...
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