. 5 फरवरी भीष्म अष्टमी - निर्वाण दिवस /भीष्म पितामह की जीवन गाथा

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 भीष्म पितामह की जीवन गाथा भीष्म पितामह का जन्म का नाम देवव्रत था. इनके जन्म कथा अनुसार इनके पिता हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे. एक बार राजा शांतनु, गंगा के तट पर जा पहुंचते हैं, जहां उनकी भेंट एक अत्यंत सुन्दर स्त्री से होती है. उस रुपवती स्त्री के प्रति मोह एवं प्रेम से आकर्षित होकर वे उनसे उसका परिचय पूछते हैं और अपनी पत्नी बनने का प्रस्ताव रखते हैं. वह स्त्री उन्हें अपना नाम गंगा बताती है और उनके विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त भी रखती है, की राजा आजीवन उसे किसी कार्य को करने से रोकेंगे नहीं और कोई प्रश्न भी नहीं पूछेंगे. राजा शांतनु गंगा की यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं और इस प्रकार दोनो विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. गंगा से राजा शान्तनु को पुत्र प्राप्त होता है, लेकिन गंगा पुत्र को जन्म के पश्चात नदी में ले जाकर प्रवाहित कर देती है. अपने दिए हुए वचन से विवश होने के कारण शांतनु, गंगा से कोई प्रश्न नहीं करते हैं . इसी प्रकार एक-एक करके जब सात पुत्रों का वियोग झेलने के बाद, गंगा राजा शांतनु की आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए जाने लगती है तो अपने वचन को तोड़ते हु...

हाड़ा राजवंश की उत्पत्ति/हाड़ा राजवंश का मूल पुरुष/ हाड़ोती में हाड़ा राजवंश की स्थापना

हाड़ा राजवंश 

हाड़ोती में हाड़ा राजवंश का काफी लम्बा शासनकाल रहा है यहां महाभारत काल से मत्स्य (मीणा जनजाति) निवास करती थी,१२४१ में स्थापित होने के पश्चात 1947 तक हाड़ोती के राजव्यवस्था की बागडोर हाड़ा राजवंश के हाथों में ही रहीं हैं हाड़ा राजवंश अपने स्थापत्य, शिकार प्रधान चित्र शैली,प्रजा वत्सल राजतंत्र, अनेकों युद्ध, अनेकों वीर, कर्तव्य प्रण क्षेत्राणिया , त्याग, बलिदान आदि के लिए जाना जाता है 

हाड़ा राजवंश की प्रारम्भिक राजधानी 

ओर जाने- राव सूरजमल हाड़ा का परिचय 


हाड़ोती में हाड़ा राजवंश की स्थापना

 हाड़ोती में हाड़ा राजवंश की स्थापना देवीसिंह हाड़ा चौहान ने की, हाड़ोती का उस समय केन्द्र बिन्दु बूंदी था ,इस समय यहां बूंदा मीणा(इसके नाम पर ही बूंदी नाम)के पोत्र जैंता का शासन था जिसे 1241 में देवा हाड़ा ने पराजित करके 1241 में बूंदी में हाड़ा राजवंश की स्थापना की, हाड़ा राजवंश दो बड़े राजवंश व १२ रियासतों (कोट रियासत)¹मे विभाजित था 


 हाड़ा चौहान के पूर्वजों को लेकर अलग अलग इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किये है जो निम्नानुसार है 

•विरविनोद के कथन अनुसार के सार पर आधारित की सांभर के राजा सोमेश्वर के छोटे बेटे के उरथ की नोवी पीढ़ी मैं भोमचन्द्र हुआ। उसका पुत्र भानुराज जुआ । जिसका दूसरा नाम अस्थिपाल था। उसके वँश मैं देव सिंह हुये जिनोने बूंदी मैं अपना राज्य स्थापित किया ।

•राजपूत वंशावली मैं ठा.ईश्वर सिंह मडा़ढ़ के लेखानुसार चोहान वंश मैं भानुराज अस्थिपाल के नाम से प्रसीद्ध था। अस्थि को हिंदी मैं हड्डी या हाड़ भी कहते है इसलिये अस्थिपाल के वंसज हाड़ा कहलाये।

• इनके अतिरिक्त लल्लूभाई देसाई ओर जगदीश सिंह गहलोत आदि ने भी हाड़ावो को नाडोल के उपरोक्त आसराज के पुत्र मणिक्यराज से वंशज होना बताया ।


• बम्बोदा शिलालेख (मेनाल शिलालेख) विक्रम संवत 1446(ई.1389)के अनुसार हाड़ा शाखा शांकभरी के चौहान शासक वाक्पतिराज के दूसरे पूत्र ने नाडोल शाखा की स्थापना की ,इनका अचेलश्वर शिलालेख में नाम माणीक्य(माणकराव) मिलता है, 

नाडोल के लक्ष्मण के पुत्र आसराज (अधिराज, अश्वपाल) के पुत्र माणिकराव  का पुत्र था। 

इनके बाद कि वंशावली  निम्नानुसार है 


3. अस्थिपाल

4. चन्द्रकर्ण

5. लोकपाल

6. हम्मीर

7. जोधराव

8. कलिकर्ण

9. महामुग्ध

10. राव पढ़ें

11. रामचन्द्र

12. रेणसी

13. जेतराव

14. आसुपाल

15. विजयपाल

16. हरराज (हाड़ा)

17. वंगा

18. राव देवा


उपरोक्त विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि नाडोल शाखा का अस्थिपाल (भांणवर्धन) ही हाड़ा शाखा का प्रथम- पुरुष था


राव देवा हाड़ा 

राव देवा हाड़ा बुंदी पर अधिकार करने से पहले मेवाड़ के सामंत थे इनके अधिन‌ क्षेत्र का नाम बम्बवादा था राव‌ देवा हाड़ा एक वीर कुशल ओर योग्य शासक थे इन्होंने अंनको जनोपयोगी कार्य करवाए, 

देवा हाड़ा ने अपने जीवनकाल में ही अपने शासन की बागडोर अपने पुत्र समरसिंह के हाथों सोप करें स्वयं ने संन्यास धारण कर लिया 

राव देवा हाड़ा 



अमरथुण का गेग्शवरी मंदिर 

देवा हाड़ा ने अमरथुण में गेग्शवरी देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।

     

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